“ये ज़िंदगी के मेले, दुनिया में कम न होंगे…” से लेकर “केशरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश…” तक—बॉलीवुड संगीत ने हर दौर में दिलों को छुआ है। यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि भारतीय समाज का आईना रहा है। 1950 के दशक की मधुर मेलोडीज़ से लेकर 2023 के डिजिटल बीट्स तक, बॉलीवुड संगीत का सफर देखे? कैसे नौशाद की शास्त्रीय धुनें ए.आर. रहमान के इलेक्ट्रॉनिक स्वरों में बदलीं? इस लेख में, हम बॉलीवुड संगीत की इस रोमांचक यात्रा को दशक दर दशक जानेंगे।
1. 1950-1960: स्वर्णिम दौर की शुरुआत
यह वह दौर था जब संगीत शास्त्रीयता और सादगी का प्रतीक था।
1.1. संगीतकार और शैली
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नौशाद: मुग़ल-ए-आज़म (1960) के “प्यार किया तो डरना क्या” जैसी शास्त्रीय रचनाओं के जादूगर।
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एस.डी. बर्मन: कागज़ के फूल (1959) में “वक्त ने किया क्या हसीं सितम” जैसे गीतों से लोक धुनों को पेश किया।
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लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी: स्वरों के राजा-रानी, जिन्होंने मदर इंडिया (1957) से चौदहवीं का चाँद (1960) तक गानों को अमर बनाया।
1.2. प्रमुख गीत
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“आवारा हूँ” (1951) – राज कपूर की आवाज़ में शैलेंद्र का लिखा यह गीत सदाबहार हिट रहा।
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“ये मेरा दीवानापन है” (1957) – मधुबाला पर फ़िल्माए गए इस गीत ने रोमांस को नई परिभाषा दी।
2. 1960-1970: रोमांस और रॉक एंड रोल का उदय
इस दशक में पश्चिमी प्रभाव और भारतीयता का अनूठा मेल देखने को मिला।
2.1. संगीत में प्रयोग
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शंकर-जयकिशन: संगम (1964) में “हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान” जैसे गीतों के साथ ऑर्केस्ट्रा का जादू।
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रवींद्र जैन: चितचोर (1976) में “गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा” जैसे ग्रामीण धुनों का चलन।
2.2. किशोर कुमार का जलवा
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“रूप तेरा मस्ताना” (1969) – आराधना का यह गीत किशोर कुमार को सुपरस्टार बनाया।
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“ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे” (1973) – दोस्ती के गीतों का सबसे बड़ा एंथम।
3. 1970-1980: डिस्को और रोमांस का दौर
इस दशक में बॉलीवुड ने डिस्को बीट्स और बोल्ड लिरिक्स को गले लगाया।
3.1. बिग बी और डिस्को डांस
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राजेश खन्ना से अमिताभ तक: शोले (1975) के “महबूबा महबूबा” से डॉन (1978) के “कुकडू कुकडू” तक।
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बप्पी लहरी: नमक हलाल (1982) के “पग घुँघरू बाँध” जैसे डिस्को हिट्स।
3.2. गुलज़ार और पंचम का जुगलबंदी
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इजाज़त (1987) का “मेरा कुछ सामान” – गुलज़ार के गीत और आशा भोसले की आवाज़ ने इसे क्लासिक बना दिया।
4. 1990-2000: ग्लोबलाइज़ेशन और रीमिक्स क्रांति
इस दौर में बॉलीवुड संगीत ने पश्चिमी धुनों को भारतीय अंदाज़ में पेश किया।
4.1. ए.आर. रहमान का जादू
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रोज़ा (1992) – “चूंडी नहीं ये मेरा दिल” और “तुम हो” ने संगीत की दिशा बदल दी।
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दिल से (1998) – “छैय्या छैय्या” जैसे गीतों ने फ़िल्मी संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई।
4.2. रीमिक्स और पॉप कल्चर
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बाबा सेहगल और अलीशा चिनॉय: “मैंने प्यार किया” (1989) और “मेड इन इंडिया” (1995) जैसे गीतों ने युवाओं को जोड़ा।
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सुखबीर और फाल्गुनी पाठक: “कजरा मुहब्बत वाला” (2001) जैसे रीमिक्स नए ट्रेंड बने।
5. 2000-2010: इलेक्ट्रॉनिक बीट्स और इंडी फ्लेवर
इस दशक में टेक्नोलॉजी और इंडिपेंडेंट म्यूज़िशियन्स का प्रभाव बढ़ा।
5.1. विशाल-शेखर और प्रीतम का दबदबा
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धूम (2004) – “धूम मचा ले” ने यूथ एनर्जी को नया स्वर दिया।
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लव आज कल (2009) – “त्वदृुम” जैसे गीतों में पंजाबी-पॉप फ्यूज़न।
5.2. इंडी संगीत का प्रभाव
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अमित त्रिवेदी: देव.डी (2009) के “एमोशनल अत्याचार” ने अलग हटकर संगीत पेश किया।
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ऐश्वर्या राय का “कजरा रे”: बन्टी और बबली (2005) का यह गीत आज भी पसंद किया जाता है।
6. 2010-2023: डिजिटल युग और वैश्विक पहचान
यह दौर ओटीटी, यूट्यूब, और इंस्टाग्राम का है, जहाँ संगीत सीमाओं से परे है।
6.1. ए.आर. रहमान से सचिन-जिगर तक
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रॉकस्टार (2011) – “कुन फ़या कुन” और “सदा हक़” ने सूफ़ी रॉक को मुख्यधारा में लाया।
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सचिन-जिगर: केशरी (2019) के “तेरा यार हूँ मैं” जैसे गीतों ने युवाओं का दिल जीता।
6.2. रील्स और शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट
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टिकटॉक ट्रेंड्स: “बेकहाबू” (2018) और “लिफ़ाफ़ा” (2023) जैसे गीतों ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई।
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इंडी कलाकार: रितुराज गोगोई और नेहा कक्कड़ जैसे आवाज़ों ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स से बॉलीवुड तक पहुँच बनाई।
7. बॉलीवुड संगीत का भविष्य: AI और मेटावर्स
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AI संगीत: लता एमजीएक्स (AI Voice Cloning) जैसे प्रयोग।
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वर्चुअल कॉन्सर्ट्स: एरिज़ोना की “नादान परिंदे” लाइव स्ट्रीम।
निष्कर्ष
1950 की शास्त्रीय मिठास से 2023 के डिजिटल बीट्स तक—बॉलीवुड संगीत ने हर बदलाव को गले लगाया है। यह सिर्फ़ बॉलीवुड संगीत का सफर नहीं, बल्कि भारतीय समाज, संस्कृति, और टेक्नोलॉजी का इतिहास है। यह लेख नहीं, बल्कि हमारे संगीत प्रेम का दस्तावेज़ है!



