भारतीय लोक संगीत के प्रकार और उनकी उत्पत्ति: सांस्कृतिक धरोहर की गाथा

भारत की मिट्टी में संगीत की धुनें उसी तरह रची-बसी हैं, जैसे यहाँ के खेतों में फसलें। लोक संगीत इन्हीं धुनों का वह सहज स्वरूप है जो गाँव-गाँव, पर्व-त्योहार, और जीवन के हर संघर्ष-उत्सव में गूँजता है। क्या आप जानते हैं कि राजस्थान का “मांगणियार” और पंजाब का “भांगड़ा” क्यों इतने अलग हैं? या फिर बिहार की “सोहर” और बंगाल की “भावई” कैसे जन्मीं? इस लेख में, हम भारत के कोने-कोने से लोक संगीत की उन विविध शैलियों को जानेंगे जो सदियों से हमारी सांस्कृतिक पहचान बनी हुई हैं। साथ ही, जानेंगे कि कैसे ये धुनें जनजातियों, किसानों, और साधारण जन की भावनाओं से निकलकर अमर हो गईं।


1. लोक संगीत क्या है? इसकी विशेषताएँ

लोक संगीत “जनता का संगीत” है—जो शास्त्रीय नियमों से मुक्त, सीधे जीवन से जुड़ा होता है।

1.1. लोक संगीत की पहचान

  • सरलता और सहजता: इसमें जटिल रागों की जगह सीधे-सादे स्वर होते हैं।
  • मौखिक परंपरा: पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाकर सिखाया जाता है, न कि किताबों से।
  • सामूहिक भागीदारी: नृत्य और सामूहिक गायन इसे खास बनाते हैं।

1.2. लोक vs शास्त्रीय संगीत: अंतर

  • लोक संगीत: गाँव-कस्बों में जन्मा, त्योहारों और मेलों से जुड़ा।
  • शास्त्रीय संगीत: राजदरबारों में पला-बढ़ा, नियमबद्ध और गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित।

2. भारत के प्रमुख लोक संगीत: प्रदेशवार विवरण

भारत के हर प्रदेश का लोक संगीत उसकी भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।


2.1. राजस्थान: रेगिस्तान की धुनें

  • प्रकार: मांगणियार, लंगा, कच्छी घोड़ी।
  • उत्पत्ति:
    • मांगणियार: मुस्लिम समुदाय द्वारा गाया जाने वाला संगीत, जो राजपूत वीरगाथाओं को बखानता है।
    • कच्छी घोड़ी: घोड़े के नकली साज़ (घोड़ी) पर नृत्य, जो मेवाड़ के किसानों की खुशी का प्रतीक है।
  • वाद्य यंत्र: कामायचा, सारंगी, डफ।

2.2. पंजाब: ऊर्जा और उल्लास का संगीत

  • प्रकार: भांगड़ा, गिद्दा, तीयां।
  • उत्पत्ति:
    • भांगड़ा: फसल कटाई के समय पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य, जो अब विश्वभर में प्रसिद्ध है।
    • गिद्दा: महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत, जो विवाह और करवा चौथ जैसे अवसरों पर गूँजता है।
  • वाद्य यंत्र: ढोल, टुम्बी, अलगोजा।

2.3. बिहार और झारखंड: जनजातीय संगीत की छटा

  • प्रकार: सोहर, जतरा, पाइका।
  • उत्पत्ति:
    • सोहर: बच्चे के जन्म पर गाया जाने वाला गीत, जिसमें माँ यशोदा और कृष्ण की कथा होती है।
    • जतरा: आदिवासी समुदायों का संगीत, जो शिकार और प्रकृति पूजा से जुड़ा है।
  • वाद्य यंत्र: मंडार, बाँसुरी।

2.4. पश्चिम बंगाल: लोकनाट्य और भावुकता

  • प्रकार: भावई, गंभीरा, बाउल।
  • उत्पत्ति:
    • बाउल: फकीरों का संगीत, जो देवत्व की खोज और मानवता का संदेश देता है। लालन फकीर इसे विश्वप्रसिद्ध बनाया।
    • भावई: पुरुलिया की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य, जिसमें मिट्टी के घड़े सिर पर रखकर नाचा जाता है।
  • वाद्य यंत्र: एकतारा, दोतारा, कारताल।

2.5. महाराष्ट्र: लावणी और तमाशा

  • प्रकार: लावणी, गोंडल, पोवाड़ा।
  • उत्पत्ति:
    • लावणी: मराठा शासनकाल में जन्मा यह नृत्य शैली श्रृंगार रस और सामाजिक मुद्दों को उठाती है।
    • पोवाड़ा: शिवाजी महाराज के वीरगीत, जो युद्ध और शौर्य को दर्शाते हैं।
  • वाद्य यंत्र: ढोलकी, हारमोनियम।

2.6. दक्षिण भारत: नाद और ताल की अनूठी परंपरा

  • तमिलनाडु: कोलत्तम, कुम्मी।
  • केरल: मार्गम काली, तिरुवाथिराकलि।
  • उत्पत्ति:
    • कुम्मी: महिलाओं का वृत्ताकार नृत्य, जो अक्सर पोंगल त्योहार पर किया जाता है।
    • मार्गम काली: ईसाई समुदाय का संगीत, जो केरल के संत थॉमस की कहानी कहता है।
  • वाद्य यंत्र: थविल, मृदंगम।

3. लोक संगीत का समाज पर प्रभाव

लोक संगीत सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम भी रहा है।

3.1. सामाजिक एकता और विरोध

  • निर्गुण भजन: कबीर और रविदास के भजनों ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ आवाज़ उठाई।
  • पंजाब का “बोलियां” संगीत: किसान आंदोलनों में युवाओं ने इसे विरोध का हथियार बनाया।

3.2. लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती

  • लावणी कलाकार: महाराष्ट्र की सुप्रिया पाटिल जैसी कलाकारों ने समाज में महिलाओं की आज़ादी का संदेश दिया।

4. लोक संगीत का आधुनिकीकरण और चुनौतियाँ

लोक संगी आज नए रूप में सामने आ रहा है, लेकिन इसकी मूल भावना को बचाना ज़रूरी है।

4.1. फ़्यूज़न और ग्लोबलाइज़ेशन

  • रागिनी डीएमएक्स: हरियाणवी लोक संगीत और हिप-हॉप का मिश्रण।
  • इंडी बैंड्स: बैंड्स जैसे “द मरदानी जाम” ने राजस्थानी लोक धुनों को वैश्विक स्तर पर पहुँचाया।

4.2. संरक्षण के प्रयास

  • डिजिटल अभिलेखागार: यूनेस्को ने राजस्थानी लोक गीतों को “विश्व धरोहर” घोषित किया है।
  • सरकारी योजनाएँ: “लोक संगीत शोध संस्थान” जैसे संगठन पारंपरिक कलाकारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

5. लोक संगीत के प्रसिद्ध कलाकार और उनका योगदान

  • तेजा बाई: मध्य प्रदेश की भील जनजाति की लोक गायिका, जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
  • मल्लिका साराभाई: गुजराती लोक नृत्य “गरबा” को वैश्विक मंच पर पहुँचाने वाली कलाकार।

निष्कर्ष

भारतीय लोक संगीत की धुनें केवल स्वर नहीं, बल्कि इतिहास, संघर्ष और उम्मीदों की गवाह हैं। यह संगीत हमें याद दिलाता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं, और इन्हें बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। चाहे वह राजस्थान के रेगिस्तान की तपन हो या केरल के सुंदर तट—लोक संगीत हर जगह हमारी पहचान है। यही वजह है कि यह हमारी विरासत के लिए भी महत्वपूर्ण है!

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