सूफ़ी संगीत

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बंगाल की बाउल संगीत परंपरा: साधना, सुर और सूफ़ियाना रूहानियत

“मनुष्य, तू क्यों भटक रहा है? अपने भीतर झाँक, वहीं तेरा ईश्वर है!” — यह संदेश बाउल संगीत की हर धुन में गूँजता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमाओं में जन्मी बाउल संगीत परंपरा संगीत से ज़्यादा एक साधना है। यहाँ साधक-कलाकार गेरुए वस्त्र पहनकर, एकतारा लिए, गाँव-गाँव घूमते हैं और अपने गीतों से जीवन के गूढ़ सवालों […]

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पंजाबी भांगड़ा म्यूज़िक का इतिहास: लोकधुनों से ग्लोबल बीट्स तक की यात्रा

“ओये बाल्के ओये… होइ होइ!”—यह धुन सुनते ही पैरों में थिरकन और दिल में जोश भर जाता है। पंजाबी भांगड़ा म्यूज़िक की यही ताकत है! यह संगीत पंजाब की मिट्टी की खुशबू, किसानों के संघर्ष, और त्योहारों की रौनक को दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह संगीत कभी सिर्फ़ फसल

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राजस्थानी लोक संगीत और कलाकार: रंगीलो संस्कृति की धरोहर

राजस्थान… नाम सुनते ही दिमाग में रेगिस्तान, ऊँट, रंग-बिरंगी पोशाकें, और झूमते हुए लोक नर्तकों की तस्वीर उभर आती है। लेकिन यहाँ की असली पहचान है इसका लोक संगीत—वो सुरीली धुनें जो सदियों से राजस्थान की आत्मा बनकर गूँज रही हैं। चाहे मांगणियारों का सुरीला साज़ हो या लंगा समुदाय का भावुक गायन, राजस्थानी लोक संगीत

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बॉलीवुड संगीत का सफर: 1950 से 2023 तक

“ये ज़िंदगी के मेले, दुनिया में कम न होंगे…” से लेकर “केशरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश…” तक—बॉलीवुड संगीत ने हर दौर में दिलों को छुआ है। यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि भारतीय समाज का आईना रहा है। 1950 के दशक की मधुर मेलोडीज़ से लेकर 2023 के डिजिटल बीट्स तक, बॉलीवुड संगीत का सफर

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म्यूज़िक थेरेपी के फायदे और उपयोग: स्वास्थ्य का संगीतमय इलाज

जब संगीत की मधुर तानें शारीरिक दर्द को कम कर सकती हैं, अल्ज़ाइमर के मरीज़ों को याददाश्त लौटा सकती हैं, या डिप्रेशन में घिरे व्यक्ति को नई उम्मीद दे सकती हैं—तो यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि म्यूज़िक थेरेपी का विज्ञान है। प्राचीन भारत में संगीत को “राग चिकित्सा” कहा जाता था, और आज पश्चिमी दुनिया भी इसे

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पश्चिमी संगीत के प्रसिद्ध वाद्य यंत्र: यूरोप से लेकर विश्व तक की धुन

जब एडवर्ड एल्गर का “पॉम्प एंड सर्कमस्टेंस” बजता है या बीथोवन की “मूनलाइट सोनाटा” सुनाई देती है, तो पश्चिमी संगीत के वाद्य यंत्रों की ताकत और भावनाओं का एहसास होता है। ये वाद्य न सिर्फ़ यूरोपियन क्लासिकल संगीत की पहचान हैं, बल्कि आज रॉक, जैज़, और पॉप में भी इनकी धमक है। इस लेख में,

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भक्ति संगीत और उसका विकास: भाव से विश्वास तक की यात्रा

जब मीराबाई ने “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई…” गाया या कबीर ने “घट-घट में बैठा राम…” का उद्घोष किया, तो उन्होंने न सिर्फ़ भक्ति संगीत को जन्म दिया, बल्कि भारत की आध्यात्मिक चेतना को एक नई दिशा दी। भक्ति संगीत सिर्फ़ धार्मिक गीत नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति, सांस्कृतिक एकता, और मानवीय भावनाओं का

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