दिवाली पर पारंपरिक संगीत की भूमिका: धुनों में जागती दिव्य आत्मा

जब सुरों से जगमगाते हैं दीये!

दिवाली की रात सिर्फ़ रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि सुरों का महाकुंभ है! जैसे दीये अंधकार मिटाते हैं, वैसे ही पारंपरिक संगीत हमारी आत्मा में आस्था की ज्योत जगाता है। चाहे लक्ष्मी आरती की मधुर घंटियाँ हों या दादी के गुनगुनाए रागिनी के भजन, ये धुनें सदियों से दिवाली की भावनात्मक रीढ़ रही हैं। इस आर्टिकल में जानिए कि कैसे पारंपरिक संगीत दिवाली को “सिर्फ पटाखों के त्योहार” से “आध्यात्मिक अनुभूति” में बदल देता है।


1. इतिहास के पन्नों में: दिवाली संगीत की जड़ें

1.1 वैदिक काल से लेकर भक्ति आंदोलन तक

  • ऋग्वेद के मंत्र: “तमसो मा ज्योतिर्गमय” जैसे सूक्तों का गायन।

  • मीरा-सूरदास की परंपरा: कृष्ण भक्ति गीतों में दीपावली का उल्लेख।

1.2 राजदरबारों का योगदान

  • अवध की रामलीला में गाए जाने वाले “राम आगमन” गीत।

  • तंजौर के मंदिरों में दिवाली पर विशेष “नादस्वरम” वादन।


2. क्षेत्रानुसार विविधता: भारत के कोने-कोने में संगीत की रोशनी

2.1 उत्तर भारत: भजनों का साम्राज्य

  • लोकप्रिय गीत: “दीपक जलूँगी आरती करूँगी”, “ऐसी लागी लगन”

  • वाद्य: हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा

2.2 दक्षिण भारत: कर्नाटक संगीत की छाया

  • तमिलनाडु: “कर्थिगई दीपम” पर मृदंगम-वीणा वादन।

  • केरल: “थिरुवथिरा” गीतों की लयबद्ध प्रस्तुति।

2.3 पूर्वी भारत: बंगाल की धुनें

  • काली पूजा संगीत: ढाक-काँसी की थाप पर “श्यामा संगीत”।


3. पारंपरिक संगीत के प्रकार: सुरों का पवित्र त्रय

3.1 आरती संगीत: देवताओं का आह्वान

आरती विशेषता
लक्ष्मी आरती “ॐ जय लक्ष्मी माता” की मधुर लय
गणेश आरती “सुखकर्ता दुखहर्ता” का जोशीला स्वर
संकटनाशिनी आरती “मंगलम भगवान विष्णु” की शांत धुन

3.2 लोक गीत: जन-जन की आवाज़

  • राजस्थान: “आसोज मासा धूम मची री” जैसे मांड गीत।

  • गुजरात: “दिवाली ना दिना” की गरबा शैली।

3.3 शास्त्रीय राग: त्योहारी सुर

  • राग श्री: लक्ष्मी वंदना के लिए उपयुक्त।

  • राग काफी: दीयों के जलते समय गाया जाने वाला।


4. वाद्ययंत्र: संगीत के असली नायक

4.1 ताल वाद्य

  • ढोलक: लय का आधार

  • घंटी: आरती में दिव्यता का संकेत

4.2 सुर वाद्य

  • हारमोनियम: भजनों की आत्मा

  • बाँसुरी: कृष्ण की याद दिलाती


5. आधुनिक दौर में चुनौतियाँ और संरक्षण

5.1 खोती परंपराएँ

  • युवा पीढ़ी का पॉप संगीत की ओर झुकाव।

  • गाँवों के वृद्ध कलाकारों का सशक्तिकरण न होना।

5.2 संरक्षण के उपाय

  • डिजिटल अभिलेखागार: YouTube पर “Diwali Folk Project” चैनल।

  • स्कूल पाठ्यक्रम: कक्षा 6-8 में “त्योहारी संगीत” मॉड्यूल।


6. घर पर पारंपरिक संगीत कैसे जीवित रखें?

6.1 सरल शुरुआत के टिप्स

  • प्रतिदिन 10 मिनट लक्ष्मी आरती का समूह गान।

  • बच्चों के साथ बनाएँ “दीया जलाओ” जिंगल।

6.2 डिजिटल संसाधन

  • मुफ्त ऐप: “Bhajan Sangrah” में दिवाली स्पेशल सेक्शन।

  • YouTube प्लेलिस्ट: “शास्त्रीय दिवाली भजन” सर्च करें।


7. विज्ञान की नजर से: संगीत का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

  • तनाव कमी: आरती के मंत्रों से कोर्टिसोल हार्मोन 23% कम।

  • पारिवारिक बंधन: समूह गायन से ऑक्सीटोसिन रिलीज।


निष्कर्ष: सुरों में सहेजें विरासत

दिवाली पर पारंपरिक संगीत सिर्फ़ स्वर नहीं, हमारी सांस्कृतिक सांसें हैं। जब आप अगली बार “ऊँ जय लक्ष्मी माता” गाएँ, तो याद रखें: आप एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को आस्था की दौलत सौंप रहे हैं। यही संगीत हमें याद दिलाता है कि दिवाली सिर्फ़ बाहरी रोशनी नहीं, भीतर के अंधेरे को मिटाने का पर्व है!

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